Wednesday, February 16, 2022

नामुमकिन!

जब ख्वाहिशें ऐसी हों जो नामुमकिन हैं
जैसे की बारिश में घूमते हुए ना भीगने की उम्मीद
जैसे भरी दोपहरी में चांद की चाहत
जैसे रेगिस्तान में जंगल की प्यास
जैसे पहाड़ों में समंदर की आस!

झूठे हैं वो जो कहते हैं नामुमकिन कुछ भी नहीं
हजारों ख्वाहिशें हैं ऐसी जो पूरी हो सकती नहीं
और ये नामुमकिन की चाहत ही तो है
जो सपनो, कहानियों, किताबों और कविताओं में जगह पाती हैं
तभी तो वो इन सबको हकीकत से
कहीं ज्यादा खूबसूरत बनाती हैं!

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